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बारिश - 1 / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

बसंत की भाप हैं बादल

बारिश एक दृष्टिभ्रम है –
सिर्फ़ पृथ्वी देख पाती
आसमान से वनस्पतियों का उतरना

बूंदों में कितने भिन्न
और असंख्य बीज
मिट्टी की इच्छा और अनिच्छा से भरपूर

मिट्टी के हर एक कण पर
लहराता है हरा परचम

बारिश कितनी बड़ी तसल्ली है
कि मवेशी अब
किसी दया के मोहताज नहीं

स्वाधीनता का उत्सव है बारिश