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बारिश / निलिम कुमार
Kavita Kosh से
उसका हृदय
ऊँचा पर्वत है --
मेघ बनकर मैं उसके पास जाता हूँ
स्पर्श करता हूँ
कभी-कभी उसके पथरीले वक्ष से टकराकर
मैं नीचे आ जाता हूँ
पहाड़, पेड़-पौधों और घरों को भिगोते हुए
लोग सोचते हैं --
बारिश आई है ।
मूल असमिया से अनुवाद : पापोरी गोस्वामी