बारे रह मन के बाती रे / पीसी लाल यादव
ओ संगी रे... ओ साथी रे...
थाम्हे रह पतवार तैंहा, हिम्मत झन हार तैंहा
बारे रह मन के बाती रे, बारे रह मन के बाती रे।
नंदिया अगम हवय दाहरा,
मुड़भर उठत हवय लाहरा।
चारों मुड़ा उठय बड़ोरा,
बाँहा-बल के लगा दे पाहरा॥
का करही आँधी-पानी, जोम दे जांगर-जवानी।
अड़ा दे बजूर छाती रे, बारे रह मन के बाती रे।
मन के जीते हवय जीत,
मन के हारे हार हे मीत।
सपना तोर सिरतोन होही,
गाए जा उछाह के गीत॥
राखे राह बिसवास तैंहा, झन छोड़बे आस तैंहा।
पुरसारथ तोरे थाती रे, बारे रह मन के बाती रे।
रात कतको बिरबिट कारी,
अंधियारी पाछू उजियारी।
दुख ले का घबराना संगी
बेरा के करने चिनहारी॥
लाहरा के उलट चल तैंहा, देखा दे बाँहा-बल तैंहा
गाये जा तैं परभाती रे, बारे रह मन के बाती रे।
सुख आवत जावत रहिथे
दुख संगी सियान कहिथे।
जेन तपथे आगी-पानी में
तेने ह जिनगी म लहिथे॥
मऊत ले काबर हे डरना, एन दिन तो हवय मरना।
बाँचे जा परेम पाती रे, बारे रह मन के बाती रे।