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बार-बार काहे मरत अभागी / संत तुकाराम

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बार-बार काहे मरत अभागी । बहुरि<ref>फिर से</ref> मरन से क्या तोरे भागी ।।धृ०।।
ये ही तन करते क्या ना होय । भजन भगति करे वैकुण्ठ जाए ।।१।।
राम नाम मोल नहिं बेचे कवरि<ref>कौड़ी</ref> । वो हि सब माया छुरावत<ref>छुड़ाती है</ref> झगरी<ref>संकट</ref> ।।२।।
कहे तुका मनसु मिल राखो । राम रस जिव्हा नित्य चाखो ।।३।।

भावार्थ :
बार-बार तुम क्यों मरना चाहते हो? क्या इससे छूटकर भागने का कोई उपाय तुम्हारे पास नहीं है? अरे भाई, यह शरीर बड़ा अद्भुत्त है, उससे क्या नहीं हो सकेगा? भक्तिपूर्ण ईश्वर भजन से वैकुण्ठ प्राप्ति हमें हो सकती है। राम नाम लेने के लिए कौड़ी भी हमें खर्च नहीं करनी पड़ती है, वही राम नाम की शक्ति प्रपंच की माया से हमें मुक्ति दिला सकती है। तुकाराम कहते हैं कि महत्त्वपूर्ण बात केवल इतनी ही है कि जब हम पूरे मन से राम नाम में तल्लीन होते हैं, तभी जिह्वा से निकलने वाला राम नाम रूपी अमृत रस हमें नित्य तृप्ति दिला देगा।

शब्दार्थ
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