भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बालक का धर्म / नंदेश निर्मल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरू-शिष्य का है यह रिश्ता
भक्त और भगवान सरीखे।

विद्या सीखो विनय भाव से
भक्त और भगवान सरीखे।

माँ बेटे का है यह रिश्ता
भक्त और भगवान सरीखे।

माँ की पूजा करो सोचकर
भक्त और भगवान सरीखे।
प्राणाधार पिता होते हैं
भक्त और भगवान सरीखे।

पुत्र पिता के सेवक होते
भक्त और भगवान सरीखे।

मित्र बनो तो इनके जैसा
सोहे कृष्ण सुदामा जैसे।

कभी मित्र को धोखा देना
होता है अपराध सरीखे।

मानवता है एक तपस्या
पूजित यह भगवान सरीखे।

भक्त और भगवान निखरते
पुष्पों की वर्षा हो जैसे।

हर रिश्ता का एक धर्म है
उसे निभाओ कर्म समझके।

कहता यह नन्देश तुझे है
गुण सीखो वरदान सरीखे।

कोटी नमन धरती का करतू
है यह तेरी माता जैसी।

धरती माता सबको माता
पूजा का भगवान सरीखे।