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बालू से तेल तुम निचोड़ेगे कब / उमाकांत मालवीय
Kavita Kosh से
बालू से तेल तुम निचोड़ेगे कब तक ?
शब्दवेधी वाण तुम छोड़ोगे कब तक ?
दिशा-दिशा से उठते
तैरते अँधेरों में,
दिए और जुगनू की
हत्या के घेरों में,
दोपहरी में सूरज
तोड़ोगे? कब तक ?
इतिहासों को झुठलाती
हुई किताबों पर,
अचकन में टँके हुए
ढीठ कुछ गुलाबों पर,
धधकते हुए सच को
मरोड़ेगे कब तक ?
बहलाओगे कोरे
नारों से मंत्रों से,
परिचित हो चले सभी
घिनहे षड़यंत्रों से,
बढ़ते सैलाबों को
मोड़ोगे कब तक ?