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बाल-बच्चे सयाने हुए / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
बाल बच्चे सयाने हुए
दिन-ब-दिन हम पुराने हुए
गाँव में तो ठिकाना भी था
शहर में बेठिकाने हुए
चाँदनी धूप में आ गई
बाल जब भी सुखाने हुए
राजनीतिज्ञ बुनते रहे
नागरिक ताने-बाने हुए
छत के नीचे भी बैठे हैं लोग
छतरियाँ अपनी थामे हुए