बाल कविताएँ / भाग २ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
चाचा जी का बन्दर
चाचा जी ने पाला बन्दर ।
करता है वह खों-खों दिन भर।
जहाँ कहीं शीशा पा जाता
दाँत दिखाता मुँह बिचकाता
आँगन के पेड़ों पर चढ़ता ।
फल तोड़ता ऊधम मचाता।
तारे
आसमान की चादर ताने
बिखरे टिमटिम-झिलमिल तारे।
जैसे फूल खिले बगिया में
वैसे खिलते हैं ये सारे ।
सब सो जाते हैं जब थककर
ओस तभी बिखराते तारे।
हुआ सवेरा सूरज निकला
चुपके-से खो जाते सारे।
तितली रानी
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तितली रानी तितली तितली
कौन देश से आई हो ।
रंग- बिरंगे सुन्दर कपड़े
किस दूकान से लाई हो ?
फूल-फूल पर घूमा करती
सबके मन को भाई हो।
नन्हीं चींटी
कभी न थकती चलती रहती
नन्हीं चींटी ।
गरमी से घबराना कैसा
सरदी में रुक जाना कैसा
भूख- प्यास सब कुछ है सहती
नन्हीं चींटी ।
सीखो सदा प्रेम से रहना
हँसकर दुख सुख सारे सहना
‘मेहनत करके जिओ’-कहती
नन्हीं चींटी ।
मुर्गा बोला
मुर्गा बोला कुकुड़ू कूँ
जाग उठा , सोता तू ।
सूरज भी अब जाग गया
दूर अँधेरा भाग गया ।
बिस्तर छोड़ो उठ जाओ
मुँह धोकर बाहर आओ।