भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाल कविताएँ / भाग 14 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
गैया
हरी दूब है गैया खाती
सबको पीठा दूध पिलाती ।
बने दूध से दही-मलाई
तरह -तरह की खूब मिठाई ।
गीत
ढोल बजा मेढक का ढम-ढम
भालू बना बाँसुरी वाला ।
अच्छे साथी मिले गधे को
गीत सुनाता गड़बड़झाला ।
सर्कस
देखो सर्कस का यह खेल
हाथी, घोड़ा ठेलमपेल ।
झूला झूल उछल हवा में
कुछ देखो छलाँग लगाते।
बन्दर , चीता, जोकर आते
सब हैं अपने खेल दिखाते।
नेवले की जीत
समझ नेवले को छोटा
नाग झपट पड़ा ।
बहुत निडर था नेवला
डटकर खूब लड़ा ।
नेवले की जीत हुई
हारा नाग बड़ा ।
सवारी
आसमान पर जहाज उड़े
जिधर चाहता उधर मुड़े॥
छुक-छुक करके आती रेल
दूर-दूर तक जाती रेल ।
लम्बी सड़क बहुत इठलाती
मोटर इस पर दौड़ लगाती ।