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बाल कविताएँ / भाग 18 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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5-बौने दिन

दिन हो जाते बिल्कुल बौने
लम्बी होतीं रातें ।
रातों में सुनने को मिलतीं
दादा जी की बातें ।

कभी कहानी, कभी पहेली
हमको रोज़ सुनाते ।
परियों की प्यारी दुनिया की
दादा सैर कराते ।

ठण्ड भगाकर अपने दम पर
दे जाती गरमाई ।
सर्दी में माँ की ममता -सी
लगती हमें रज़ाई ।

निंदिया रानी आ चुपके-से
जब हमको सहलाती ।
सपनों की सुनदर नगरी में
हम सबको पहुँचाती ।

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6-धूप की चादर

घना कुहासा छा जाता है
ढकते धरती-अम्बर ।
ठण्डी- ठण्डी चलें हवाएँ
सैनिका जैसी तनकर ।

भालू जी के बहुत मज़े हैं
ओढ़ लिया है कम्बल ।
सर्दी के दिन कैसे बीतें
ठण्डा सारा जंगल ।

खरगोश दुबक एक झाड़ में
काँप रहा था थए-थर ।
ठण्ड बहुत लगती कानों को
मिले कहीं से मफ़लर ।

उतर गया आँगन में सूरज
बिछा धूप की चादर ।
भगा कुहासा पल-भर में ही
तनिक न देखा मुड़कर ।

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