बाल कविताएँ / भाग 8 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
हम चाँद बनेंगे
हम चाँद बनेंगे
अँधियारे में
पथ दिखलाएँगे
हम बन कर तारे
सूने नभ में
फूल खिलाएँगे ।
हम बनकर सूरज
नया उजाला
लेकर आएँगे ।
हम बनकर भौंरे
उपवन-उपवन
गीत सुनाएँगे ।
हम फूल बनेंगे
प्यारी खुशबू
रोज लुटाएँगे ।
अब हमने ठाना
इस धरती को
स्वर्ग बनाएँगे ।
सूरज का गुस्सा
सूरज को गुस्सा आता
धरती को जड़ता चाँटे ।
मन में जितनी आग भरी
सारी दुनिया को बाँटे ।
झुलसे पेड़ों के पत्ते
पौधे सारे कुम्हलाए ।
प्यासे गैया-बकरी भी
पानी-पानी चिल्लाए ।
चीख सुनी जब बादल ने
दौड़ा-दौड़ा वह आया ।
दशा देखकर धरती की
जीभर पानी बरसाया ।
सबसे प्यारे
सूरज मुझको लगता प्यारा
लेकर आता है उजियारा ।
सूरज से भी लगते प्यारे
टिम-टिम करते नन्हें तारे।
तारों से भी प्यारा अम्बर
बाँटे खुशियाँ झोली भर-भर ।
चन्दा अम्बर से भी प्यारा
गोरा चिट्टा और दुलारा ।
चन्दा से भी प्यारी धरती
जिस पर नदियाँ कल-कल करती ।
पेड़ों की हरियाली ओढ़े
हम सबके है मन को हरती ।
हँसी दूध –सी जोश नदी –सा
भोले मुखड़े मन के सच्चे ।
धरती से प्यारे भी लगते
खिल-खिल करते नन्हें बच्चे ।
इन बच्चों में राम बसे हैं
ये ही अपने किशन कन्हाई ।
इन बच्चों में काबा-काशी
और नहीं है तीरथ है भाई ।
दो बदमाश
दो बदमाश बड़े हैं खास
दिनभर ऊधम मचाते हैं ।
घर की थाली और कटोरी
दूर फेंक कर आते हैं ।
इक पलंग के नीचे छुपता
इक टेबल पर चढ़ जाता है ।
एक खड़ा होकर खिड़की में
ज़ोरों से चिल्लाता है ।
दूजा घर के बर्तन लेकर
बिना ताल बजाता है ।
एक नींद में सपने देखे
जगकर इक मुस्काता है ।
जब फ़ोन की घण्टी बजती
बड़का दौड़ लगाता है
छुटका छुपकर मार झपट्टा
झट से फ़ोन उठाता है ।
"हैलो-हैलो" जब कोई करता
छुटका खिल-खिल करता है
मुँह बढ़ाकर आगे बड़का
फुर्र-फुर्र कर मन हरता है।
घर के गहरे सन्नाटे पर
विजय इन्होंने पाई है ।
इनके घर में आ जाने से
घर में खुशबू छाई है ।