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बाल क्षणिकाएँ / महेश कटारे सुगम
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एक
बिल्ली बोली म्याऊँ-म्याऊँ।
बूढ़ी हूँ मैं किसको खाऊँ।
चूहे हैं शैतान बड़े,
मुझे चिढ़ाते खड़े-खड़े।
नहीं पकड़ में वे आते हैं,
झट-पट बिल में घुस जाते हैं।
दो
कैसे देख सकूँगा मेला।
पास नहीं है मेरे धेला।
अम्मा दे दो पाँच रुपैया
ले आऊँ बन्दर अलबेला।