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बाल विवाह: जल्दी क्या है? / संतोष कुमार सिंह

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अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।
प्रेम और ममता की मूरति, पूरी तो गढ़ जाने दो।।

अभी खेलने के दिन इसके,
हुआ न बचपन पूरा है।
कच्ची कली अभी बगिया की,
यौवन अभी अधूरा है।।
अभी बृद्धि की ओर बेल है, थोड़ी-सी बढ़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।

जीवन बगिया में तितली का,
सैर-सपट्टा होने दो।
कच्ची गागरिया के तन को,
कुछ तो पक्का होने दो।।
अभी-अभी तो हुआ सबेरा, धूप तनिक चढ़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।

करके पीले हाथ उऋण हैं,
समझो यह नादानी है।
तुमने लिख दी एक कली की,
फिर से दुःखद कहानी है।।
चन्द्रकला की छटा धरा पर, थोड़ी-सी इठलाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।

तनिक भूल से जीवन भर तक,
दिल का दर्द बहा करता।
अगर न सुदृढ़ नींव होइ तो
सुन्दर महल ढहा करता।।
चिड़िया के सँग-सँग बच्चों को, थोड़ा-सा उड़ जाने दो।
अभी ब्याहने की क्या जल्दी, थोड़ा लिख-पढ़ जाने दो।।