भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल वीर / रचना उनियाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ मुझको छोटा मत समझो, मुझको रण में जाना है।
अपनी पूरी ताक़त से फिर, रिपु के होश उड़ाना है।

जल्दी जाकर तू दर्ज़ी से,
वर्दी मेरी सिलवा दे।
और वहीं से फिर मेरे को,
बंदूकें भी दिलवा दे।
दन दन दन गोली गोलों से, अरि को मज़ा चखाना है।
अपनी पूरी ताक़त से फिर, रिपु के होश उड़ाना है।

छोटा हूँ पर जानूँ मैं भी,
कौन डाल दुश्मन बैठा।
रोज़ दागता गोले हम पर,
स्वर्ग ज़मीं पर भी ऐंठा।।
सिंह पुत्र हूँ सीमा पर अब, लड़ना उन्हें दिखाना है।
अपनी पूरी ताक़त से फिर, रिपु के होश उड़ाना है।

माता तू डरना बिल्कुल मत,
नन्हा बालक ज़िंदा है।
मेरी साहस की बातें सुन,
हर बैरी शर्मिंदा है।
काटूँगा मैं हर बाधा को, समर विजय कर आना है।
अपनी पूरी ताक़त से फिर, रिपु के होश उड़ाना है।
छोटे-छोटे हाथों में है,
प्यार भरा साया तेरा।
भाल कभी चूमेगी जब तू,
 वीर कहे यह भू मेरा।
विजयी भारत सदा रहेगा, दुनिया को बतलाना है।
अपनी पूरी ताक़त से फिर, रिपु के होश उड़ाना है।