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बाल सखा देवेन्द्र नाथ झाक (स्मृतितर्पण) / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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साठि बरख बीतल बयस अनुखन-जनिका संग।
तनिक वियोगेँ जीवनक रंग भेल बदरंग॥
लागल रहलहुँ आइए छल व्रत देवोत्थान॥
ओमहर विधिक विधानमे छल देवेन्द्रोत्थान॥
वचनेँ कहि न सकैत छी पारस्परिक सिनेह।
हमरा भाइक संग छल एक प्राण दुइ देह॥
एक मात्र आश्रय जनिक छलथिन श्री जगदम्ब।
हमरहु प्रतिभा हेतु ओ छला परम अवलम्ब॥
दूनू मित्रक नाममे उत्तर पद अछि ‘नाथ’।
देवलोक कय गमन ओ हमरा कयल अनाथ॥
हम लौकिकतामे रमल कयल मनुज-तन व्यर्थ।
ओ वेदक मर्मज्ञ बनि बुझिलनि जगतक अर्थ॥
एहि विदेहक भूमिमे अछि किछु अद्भुत तत्त्व।
जे रखने अछि आइ धरि निः स्पृहताक महत्त्व॥
जहिना कोइला खानिमे हीरा सब न चिन्हैछ।
जकरा नहि छै दृष्टि ओ से नहि पाबि सकैछ॥
छला समाजक बीच ओ तेहने अनुपम रत्न।
बिनु पुण्येँ नहि प्राप्त हो कयनहु कठिन प्रयत्न॥
मनक भाव ककरा कहब स्वर अछि विस्वर भेल।
देखि रहल छी मौन भय नियतिक निर्मम खेल॥
हृदय पटल पर खचित अछि रूप, विकल मन-प्राण।
करथु कृपा कय मैथिली शोकोदधिसँ त्राण॥