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बावन पत्ते ताश के ! / कन्हैयालाल मत्त

तेरह-तेरह चार तरह के,
बावन पत्ते ताश के !

दुग्गी, तिक्की, चौका, पंजा,
फिर छक्का सत्ता, अट्ठा ।
नहला, दहला, गुल्ला, बेगम,
शाह बड़ा बाँका पट्ठा !

सब के सब लगते हैं, जैसे —
ताज़ा फूल पलाश के !
बावन पत्ते ताश के !

इन्हें पीटकर रख देता है,
एक अकेला ही इक्का !
ताक़त वालों की दुनिया में
चलता है जिसका सिक्का ।

नमस्कार करते हैं जिसको,
देवदूत आकाश के !
बावन पत्ते ताश के !

लाल रंग के ईंट-पान हैं,
काले-काले हुकुम-चिड़ी ।
बदी हुई बाजी मत खेलो,
हो जाएगा माल तिड़ी ।

मन बहलाने के साधन ये —
साधन नहीं विनाश के !
बावन पत्ते ताश के !