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बाहर अगर यह गुलाबों के खिलने का वक़्त है / हेमन्त शेष
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बाहर अगर यह गुलाबों के खिलने का वक़्त है
तो चिड़ियों के बीट करने का भी
या बच्चों के गुसलखानों में जाने का
चाय का कप आने का तब तक कुछ-न-कुछ घसीटने को लिखता हूं
जितना अनलिखा रह जाता है
उससे ज़्यादा कठिन है वह
जो नहीं लिखा जा सका!