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बाहर की चमक देखी है अंदर नहीं देखा / उर्मिल सत्यभूषण
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बाहर की चमक देखी है अंदर नहीं देखा
इस घर का सुलगता हुआ मंज़र नहीं देखा
तुम ऊँचे महल में भी बहुत खुश नहीं दिखते
तुमने कभी हम मस्तों का वो घर नहीं देखा
साहिल पे खड़े, दूर से मौजों को गिना है
तुमने कभी उमड़ा हुआ सागर नहीं देखा
माली ने बगीचे में बहुत फूल खिलाये
पर प्यास से मरता हुआ तरुवर नहीं देखा
उर्मिल वो न समझेंगे ये हालात जिन्होंने
शीशे की हवेली से उतर कर नहीं देखा।