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बाहर निकलने की जुरूरत / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
मौसम
चाय पीते-पीते बदल जाता है
और गाँव
कभी दिखाई ही नहीं देता
भविष्य
हमेशा दो घंटा दूर रहता है
थक जाने पर मदद नहीं करता
इतनी सारी बातों के बीच रहती है
घर से बाहर निकलने की जुरूरत।