भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बा / सुमन केशरी
Kavita Kosh से
कितना कठिन है
शब्दों में तुम्हें समेटना
बा
तुम एक परछाईं-सी सूरज की
उसी के वृत्त में अवस्थित
चंदन लेप के समान
उसको उसी के ताप से दग्ध होने से बचातीं
उसे भास्कर बनातीं…