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बिके अभावों के हाथों / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
मन बेचारा एकवचन
लेकिन
दर्द हजार गुने ।
चाँदी की चम्मच लेकर
जन्में नहीं हमारे दिन
अँधियारी रातों के घर
रह आए भावुक पल-छिन
चंदा से सौ बातें कीं
सूरज ने जब घातें कीं
किंतु एक नक्कारगेह में
तूती की ध्वनि
कौन सुने ।
बिके अभावों के हाथों
सपने खील-बताशों के
भरे नुकीले शूलों से
आँगन-
खेल तमाशों के
कुछ को चूहे काट गए
कुछ को झींगुर चाट गए
नए-नए संकल्पों के
जो भी हमने जाल बुने।