भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने / सिद्दीक़ मुजीबी
Kavita Kosh से
बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने
मिरे हिस्से में जो आया ख़सारा रख लिया मैं ने
हिसाब-ए-दोस्ताँ करते तो हर्फ़ आता तअल्लुक़ पर
उठा रक्खा उसे और गोशवारा रख लिया मैं ने
जुदाई तो मुक़द्दर थी मुझे एहसास था लेकिन
कफ़-ए-उम्मीद पर फिर भी शरारा रख लिया मैं ने
ज़रा सी बूँद जो रौशन है अब तक ख़ल्वत-ए-दिल में
चराग़-ए-शाम तेरा इस्तिआरा रख लिया मैं ने
मिरी आँखों में जो सय्याल आईनों के टुकड़े हैं
उन्हीं टुकड़ों पे मक़्तल का नज़ारा रख लिया मैं ने
ख़ुशी ख़ैरात कर दी और ज़माने भर के रंज ओ ग़म
मिरे दिल को हुआ जितना गवारा रख लिया मैं ने
मिरी दरिया-दिली ने भर दिया कासा समुंदर का
बदन पर रेत हाथों में किनारा रख लिया मैं ने