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बिखराव / शुभा

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वनस्पति के पीछे चलती हैं
उसकी ख़ुशबू
सात सुरों की तरह
हज़ार गीतों की तरह

मनुष्य के पीछे चलते हैं
दुख और ख़ुशी
एक-दूसरे का पता देते

सात सुर टूट रहे हैं
जैव-श्रृंखला की तरह
साज़ अभी बज रहा है

हज़ार गीतों के टुकड़े
आपस में उलझ रहे हैं।