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बिखरा व्यक्तित्व / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
कभी जो जीवन से
लगने लगे डर
विपत्तियाँ कभी जो
उतर आयें तोड़ने
झकझोरने पर
साहस का दामन
जो छुटने लगे हाथ से
संकल्प का दम
घुट जो जाए कभी
समय की तेज़ धूप
जो झुलसाए तुझे
अतीत के आंगन में
बैठ लेना तू
यादों के उस वृक्ष की छाँव-तले
जहां मैंने तुम्हारे लिए
ख़ुशी की भावना
हंसी की प्रेरणा
साहस की डोर
संकल्प और विश्वास
रख छोड़े हैं
उन्हें मेरा उपहार समझ कर
समेट लेना
मैं स्वयं उन्ही में
मिलूंगा तुम्हें
बिखरा हुआ।