बिखरी सी ज़िन्दगी में म'आनी का हुक्म है / रवि सिन्हा
बिखरी सी ज़िन्दगी में म'आनी का हुक्म है
मेरी क़लम को एक कहानी का हुक्म है
आइंदगी की धुन्ध में ला-फ़ानियत के अक्स
इमरोज़ से तो नक़्ल-ए-मकानी का हुक्म है
गहराइयों से भेज दे असरार के भँवर
पत्थर को आज मौज-ए-रवानी का हुक्म है
तारीख़ का ये दौर मगर कौन सोगवार
वीरानियों की आँख में पानी का हुक्म है
इरफ़ाँ के अंजुमन में तो बैठे हैं ग़मगुसार
महफ़िल कहीं सजा ये जवानी का हुक्म है
तस्वीर मेरी टाँग दी है रुख़्सती के बाद
इस बे-ज़ुबाँ को नग़्ज़-ए-बयानी का हुक्म है
शब्दार्थ :
आइंदगी – भविष्य (future);
ला-फ़ानियत – अमरता (immortality);
इमरोज़ – आज का दिन (today);
नक़्ल-ए-मकानी – घर बदलना, प्रवास (change of residence, migration);
असरार – रहस्य (mysteries, secrets);
मौज-ए-रवानी – बहती हुई धारा (flowing stream);
सोगवार – शोक मनाने वाला (sorrowful);
इरफ़ाँ – विवेक, बुद्धि (wisdom);
अंजुमन – सभा (assembly);
नग़्ज़-बयानी – विलक्षण भाषण-कला (beautiful narration)
