भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिखरे संबंध / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संबंधों के बीच
जब एकाएक ही
उदास मौन फैलने लगता है, तब
नीली आँखों में जम आई
परायेपन की काई पर से
प्यार के अर्थ
एक-एक कर
फिसलने लगते हैं, जिन्हें
पकड़ पाने में
काँपती शाखाओं-से बेजान हाथ
अपने आप को
नितांत असमर्थ पाते हैं,
वो मोह/ जिसमें कभी आकंठ
डूब जाने को जी चाहता था,
अब तेज धार-सा
नसों को चीरे डालता है/
साँसों की सुगंध भी
ठोस होकर
फेफड़ों में चुभने लगी है।
अब और कुछ नहीं होगा
बस--
बीती बातें
हमारी जीवित लाशों पर
मर्सिया पढ़ेंगी और हम
अपने से भी कटे-कटे
चाहे/अनचाहे
एक-दूसरे के कांधों पर
आरोपों/प्रत्यारोपों का बोझ
डालते रहेंगे, जब तक कि
हमारे कांधों की हड्डियाँ
चरमरा-चरमरा कर टूट न जायें।
फिर भी/अनजाने ही
उस क्षण का भय
गहरे तक झुरझुरा जाता है, जब
अतीत की परछाइयाँ
वर्तमान की दहलीज़ पर
सिर पटक-पटक कर
अपने होने का अहसास करायेंगी।