बिखर चुका है तअ'ल्लुक़ कसाओ मुश्किल है
चलो हटाओ कि अब रख-रखाव मुश्किल है
लचक की आख़िरी मंज़िल में आ चुकी है शाख़
बस और इस से ज़ियादा झुकाओ मुश्किल है
बचा के रक्खा है अब तक चराग़ की लौ को
मगर हवा है हवा पर दबाओ मुश्किल है
हिसाब-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ हो चुका अब इस के बाद
कोई भी जोड़ कोई भी घटाओ मुश्किल है
अभी उदासियाँ खे़मे लगाए बैठी हैं
अभी तो दिल में ख़ुशी का पड़ाव मुश्किल है