बिखर जाऊँगा मैं / निश्तर ख़ानक़ाही
फ़रामो शगारी की लीलाहटों में धुआं
बनके इक दिन बिखर जाऊँगा मैं
कोई धुंधला-धुध़ला-सा मंज़र हो जैसे,
अभी याद हूँ कल बिसर जाऊँगा मैं
मेरे सच की सारी हक़ीक़त यही है
कि सच्चाई के झूठ का रूप हूँ मैं
अगर सबका सच ही बनना पड़ा तो
अँधेरे में हर-सू बिखर जाऊँगा मैं,
मुझे सब्ज़ो-शादाब चावल के रेज़े*
अभी और चुनने दो इन घाटियों में
मैं आबी परिंदा हूँ जाड़ों की रात का
ये मौसम जो गुज़रा, गुज़र जाऊँगा मैं
तुम्हीं अब कोई ऐसी तकदीर सोचो
कि राइज-शुदा* जिंदगी जी सकूँ मैं
न सोची तो इन बेकराँ* बुसअतों* मैं,
अकेला-अकेला ही मर जाऊँगा मैं
मैं संगे-सरे-राह* हरगिज़ नहीं हूँ
मुझे इस तरह ठोकरों से न रौंदो
मैं पत्थर पहाड़ों की ढलवान का हूँ
अभी हूँ, अभी कूच कर जाऊँगा मैं
मैं चारों दिशाओं को मुट्ठी में थामें,
तहे-आस्माँ बे-सहारा खड़ा हूँ
कोई रास्तों का तैयुन* नहीं है
किसी को ख़बर क्या कि घट जाऊँगा मैं
1-भूल
2-हरे-भरे
3- रेज़े--टुकड़े
4- राइज-शुदा--प्रचलित
5-बेकराँ--असीम
6- बुसअतों--फैलाव
7- संगे-सरे-राह--रास्ते का पत्थर
8- तैयुन--निर्धारण