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बिखर रहा विश्वास आजकल / सत्यम भारती
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बिखर रहा विश्वास आजकल
आम-जनों की आस आजकल
गांवों के सपने सलीब पर
शहरों में उल्लास आजकल
बहू रोज डिस्को जाती है
वृद्धाश्रम में सास आजकल
दिल्ली खून-पसीना पीती
नहीं बुझ रही प्यास आजकल
कविगण मिल कोरस गाते हैं
कविता बनी परिहास आजकल
देख मंच की हालत 'सत्यम'
गदहों में उल्लास आजकल