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बिगड़ा हुआ नसीब बनाऊं तो किस तरह / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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बिगड़ा हुआ नसीब बनाऊं तो किस तरह
अपने क़रीब उनको मैं लाऊं तो किस तरह।

दिल में दबे सवाल गिनाऊँ तो किस तरह
गुल हो चुके चिराग़ जलाऊं तो किस तरह।

उतरा ख़रा जो है न कभी इम्तिहान में
उसको मैं राज़दार बनाऊं तो किस तरह।

कोठे पे रह के आज तलक पाक-पाक हूँ
दुनिया को ये यक़ीन दिलाऊं तो किस तरह।

क़द कर लिया बड़ा है बहुत झूठ बोल कर
अब खुद को आइना मैं दिखाऊं तो किस तरह।

झूठी खुशी में दोस्त सराबोर बज़्म है
सच बोलकर मैं आग लगाऊं तो किस तरह।

आने की राह और थी जाने की और है
कदमों के अब निशान मिटाऊं तो किस तरह।

'विश्वास' इस दफे भी मिली मात इश्क़ में
महफ़िल में अब नज़र मैं उठाऊं तो किस तरह।