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बिछड़ा साथी / कविता भट्ट
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क्या कभी नदिया का एक किनारा
दूसरे किनारे से जा मिला है?
बंजर -सूखे- कँटीले रेगिस्तान में
आशा का कोई फूल खिला है?
आम की कुसुमित डाली से
सुरभित मधुवन हुआ है?
जहर उगलती विषकन्या को
प्यार से किसी ने छुआ है?
क्या कभी मानव-देह का परिचय
समक्ष ईश्वर के हुआ है?
जीत कर भी सब हारे यहाँ पर
जिन्दगी तो एक जुआ है?
क्या कभी चांदनी रात में
तारों का कोई सिलसिला है?
खण्डहर फिर से बसा और
बिछड़ा साथी फिर से मिला है?