भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है / 'असअद' बदायुनी
Kavita Kosh से
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है
ये तजरबे भी इसी ज़िंदगी में करना है
हवा दरख़्तों से कहती है दुख के लहजे में
अभी मुझे कई सहराओं से गुज़रना है
मैं मंज़रों के घनेपन से ख़ौफ़ खाता हूँ
फ़ना को दस्त-ए-मोहब्बत यहाँ भी धरना है
तलाश-ए-रिज़्क़ में दरिया के पंछियों की तरह
तमाम उम्र मुझे डूबना उभरना है
उदासियों के ख़द-ओ-ख़ाल से जो वाक़िफ़ हो
इक ऐसे शख़्स को अक्सर तलाश करना है