भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिछोह / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
बीं’ दिन
मायकै जाण सारू
म्हूं
जणां ब्हीर होई
तद सोचै ही कै
मोड़ माथै
मुड़ण स्यूं पैली
म्हूं थानै मुड़’र निरखूंली
तद
थे मुळकान फेंकता
मन्नै करस्यौ बिदा
पण
म्हूं देखती रैह्गी
बंद किवाड़ां नै
थानै स्यात ठा’ नीं
आखै रस्तै
झरणै दांईं बैंवती रैयी
म्हारी आँख्यां
कदी सोचूं
कै थे आपरी भावुकता रै परबस
स्यात देख नीं सकै हा
म्हारौ बिदा होवणौ
इणी कारण
दुराजौ बंद कर लियौ स्यात
अर आपणै कमरै मांय
टीवी माथै राख्योड़ी
म्हारी फोटू नै निरखता
अर उण माथै हाथ फेरता
थे भीतर ई भीतर
घणांईं रोया हुयसी
म्हारै बिछोह सारू।