बिजलियों को मेघ का उत्तर / पंकज परिमल
मैं सरस रसधार हूँ जल की
आँधियों के वेग का उत्तर ।।
क्रान्ति की कुछ भ्रान्तियाँ रचकर
यूँ कड़कने से न कुछ होगा ।
नष्ट ही तो अन्ततः होना
सिर पटकने से न कुछ होगा ।।
मैं सृजन के हित गला हर पल
बिजलियों को मेघ का उत्तर ।।
रूप के आयाम विस्तृत भी
मैं रहा यूँ ही तिरस्कृत भी ।
पर किसी अनुराग की लय-सा
कर रहा तुमको चमत्कृत भी ।।
प्रीति के मधुछन्द-सा हूँ मैं
काम के आवेग का उत्तर ।।
कामना की व्यूह-रचना में
मैं सहज सन्तोष का धन हूँ ।
मोतियों की कान्ति कम करता
भाल पर वो स्वेद का कन हूँ ।।
शान्ति का अध्याय आध्यात्मिक
मानसिक उद्वेग का उत्तर ।।
मैं अनुर्वर खेत में हल की
रेख की पदचारणा जैसा ।
मैं किसी सम्प्राप्त संकट के
नाश की अवधारणा जैसा ।।
मैं भुजा में कर्म का बल हूँ
भाल के आलेख का उत्तर ।।
मैं सहज उच्छ्वसित ऋत वाणी
आन्तरिक अनुभूति हूँ सत की ।
मैं नहीं अनबूझ लिपि-सा हूँ
याकि भाषा पालि-प्राकृत की ।।
धर्मग्रन्थों की न टीका-सा
पण्डितों या शेख का उत्तर।।