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बिजुरी से यहुँ चमकाबय / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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बिजुरी से यहुँ चमकाबय,
उमड़ि घुमड़ि धन आबय,
घुरियाबय घर नीरद, नीर न बाँटय रे की।
लहरय धन कन्तुल माला,
लय बाढ़नि सतबढ़ना सबके ँ झाँटय रे की।
परूँको न धान भेलै’
मड़ए परिधान भेले’
एहूबेरूक दिनकर दिन भरि डाँटय रे की।
रोपल गब कानि रहल छै’
चुरूओ ने पानि बचल छै’
कापय कृषकक कोढ़ कि धरती फाटय रे की।
भिठहाम ठाढ मकै छै’
ओस राति भरि भदबरिया सब चाटय रे की।
कहने छथि वाम विधाता,
रूसलि छथि धरती माता,
लोक अभागल कत दिन संकट काटय रे की।