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बिजोग / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
बीत रई है
जिन्दगी
उणीं भांत
जियां
मांझळ रात नैं
आलणैं सूं
पंछीड़ो,
भटक्योड़ो
डांफां मारतो फिरै
अंध्यारी रात में