1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना ही नहीं थी यह साम्राज्यवाद के विरू़द्ध उस दौर की विश्व की सबसे बड़ी जंग थी भले ही इसमें शामिल लोग इसे इस रुप में नहीं समझते थे। इसी कारण मार्क्स ने अपने समकालीन लेखकों मे इस जंग की ‘फांस की क्रान्ति’ 1789 के युद्ध से तुलना की है और इसे फौजी बगावत न मानकर राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी है। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का घटना क्षेत्र और फलक अत्यन्त व्यापक था । आज भी इतिहास का वह दौर पूरी तरह से सामने नहीं आ सका है। भारत वर्ष मे बहुत से लोग आये। हुन, शक, कुशान, अरबी, तुर्क सभी आये मगर वह यहां की कल्चर में घुल-मिल गये। अंग्रेजों का भारत आगमन व्यावारियों के रुप में हुआ। समंदर के जरिए खामोशी से कारोबार शुरु किया गया। आहिस्ता आहिस्ता ईस्ट इन्डिया कम्पनी जिसने अपनी प्रतिरक्षा में सैनिकों की कमान तैयार की थी, एक सैन्य और मजबूत कारोबारी ताकत के रुप में उभर कर सामने आई। अंग्रेज जब भारत आये तो वह अपनी कल्चर भी साथ ले कर आये और भारत के जनजीवन को गहरे तक प्रभावित किया। क्या बताया भलाः
बिदेशी बहोत आये भारत मैं वे देशी होगे आड़ै आकै॥
फिरंगी तो खुद रहया फिरंगी रंग म्हारा बदल्या हांगा लाकै॥
हून शक कुशान आये तो पहण लिया भारत का बाण़ा
अरबी तुर्क आये भारत मैं धारया म्हारा पीणा खाणा
कई-कई कल्चर मिली आपस मैं मिला लिया नया पुराणा
कई देशों का भारत यो म्हारा सबतै न्यारा इसका ताणा
फिरंगी नै राज जमाया या जात पात की खाई बढ़ाकै॥
अपणी कल्चर लयाया देश में म्हारा भेस अपनाया ना
म्हारे अंध विश्वास पै खेल्या पीछे मुड़कै लखाया ना
मैकाले ल्याया किसी शिक्षा यो खेल समझ में आया ना
रेल बिछाई पूरे देश मैं भारतवासी फुल्या समाया ना
कच्चा माल लेग्या लंदन मैं बेच्या पक्का भारत ल्याकै॥
सस्ते मैं लिया म्हारा कच्चा महंगे भाव दिया पक्का माल
दोनूं कान्यहां फिरगी नै भारत देश की तारी खाल
देख बायो डाय वर सिट म्हारी अंग्रेजां ने गेरी राल
लूटे हम गेर फिरंगी नै श्याम दाम दण्ड भेद का जाल
बिठाये हम भगवान भरोसे ना देख्या हिसाब लगाकै॥