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बिना दीप के / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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एक हाथ ताली नैं बाजै
एक पहिया सेॅ गाड़ी जी।
धोती केवल सुन-सुन लागै।
शोभै धोती साड़ी जी।
पति-पत्नि सेॅ घोॅर बनै छै,
पत्नी बिनु घर सूना जी
बिना दीप केॅ महल मरघट छै।
भाँय भाँय अति दूना जी।
बिन घरनी घर भूत के डेरा।
ई तेॅ दुनिया मानै छै।
यही लेल विधुर भेला पर,
पुरुश बेचारा कानै छै।
पैंसठ बरस सुहागिन रहलेॅ
एकाशी बरस उमरिया जी।
सजी धजी गाजा बाजा संग
गेलेहेॅ घाट सिमरिया जी।
तोरों भाग्य सितारा जगमग
बेटा, पोता नाती नतनी दामाद।
बेटी, पुतोह पोती नतनी सेॅ
महल अटारी तक आबाद।
रोज रोज एकाकी जीवन
रही-रही केॅ शालै छै
कत्तोॅ मोॅन बहलैला पर भी।
दिल दिमाग केॅ चालै छै।

26/07/15 सायं 5 1/2 बजे