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बिना प्रीति नहिं मिलते प्रियतम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग वागेश्री-ताल कहरवा)

 बिना प्रीति नहिं मिलते प्रियतम, बिना त्याग मिलती नहिं प्रीति।
 सर्वत्याग इसीसे प्रियतम-प्रीति-प्राप्तिकी सुन्दर रीति॥
 धन-सम्पत्ति, मान-पद-गौरव, इन्द्रिय-सुखकर भोग अनन्त।
 सबको सहज त्याग जो करता मुक्ति-वासनाका भी अन्त॥
 स्व-सुख-वासना लेशमात्र भी कभी न रहती किसी प्रकार।
 मिलती उज्ज्वल प्रीति परम उस भाग्यवान जनको अविकार॥
 लहराता इस दिव्य सुधा-रसका है पारावार अगाध।
 सफल करो जीवन, उन राधाका कर आराधन निर्बाध॥