भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना प्रेम जीवन / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
बिना प्रेम जीवन बना है अधूरा
प्रणयिनी! इसे हम अभी पूर्ण कर लें
चलो हाथ पकड़ो हवाएँ बुलातीं
समन्दर किनारे चलो घूम आएँ
मधुर गीत ग़ज़लें मधुर रागिनी में
युगल सुर सजाकर वहाँ खूब गाएँ
नहीं जी सकूंगा कभी भी अकेले
सुवासित पलों से इसे आज भर लें
जमाना हमेशा हमें टोकता है
हमें रोक लेतीं सभी वर्जनाएँ
कहो आज सीमा उसे तोड़ दूं मैं
अधूरी रहेंगी नहीं कामनाएँ
हृदय से अगर हम खुशी चाहते हैं
विधाता दुखों को त्वरित आज हर लें
धरा व्योम को मैं अभी एक कर दूँ
अपेक्षित खुशी भी तभी तो मिलेगी
प्रणयकेलि हो तो हृदय में हमारे
विरह अग्नि फिर तो नहीं ही जलेगी
अभी है परस्पर समर्पण जरूरी
अहं को भुला हम यहीं आज धर लें