भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना बात ही रूठ जाना किसी का / मधु 'मधुमन'
Kavita Kosh से
बिना बात ही रूठ जाना किसी का
कहाँ तक सहे कोई नखरा किसी का
हैं चेहरे पर चेहरे लगाए हुए सब
हो मालूम कैसे इरादा किसी का
न तेरा हुआ गर तो क्या इसमें हैरत
हुआ है सगा कब ज़माना किसी का
ये कैसी अजब त्रासदी है जहाँ की
मुसीबत किसी की है मौक़ा किसी का
जब उसकी अदालत में पेशी पड़ेगी
नहीं काम आएगा रुतबा किसी का
यही इक दुआ है हमारी तो या रब
न उजड़े कभी आशियाना किसी का
बनेगा सहारा तुम्हारा भी कोई
अगर तुम बनोगे सहारा किसी का
कोई लाख कर ले जतन चाहे ‘मधुमन‘
नहीं ज़ोर क़िस्मत पर चलता किसी का