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बिना शीर्षक-3 / विजया सती
Kavita Kosh से
ठहर गए हैं कुछ पल !
घड़ी की सुइयों पर दबाव मैंने नहीं डाला
कैलेण्डर की तारीख़ को भी
दृष्टि से नहीं बांधा
फिर भी अगर ये पल
ठहर गए हैं तो
क्या मैं जीना स्थगित कर दूँ
कुछ देर के लिए ?