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बिन अपराध मन मोहन को दोष थामि / चंद्रकला
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बिन अपराध मन मोहन को दोष थामि,
काहे मन मान धारि प्यारी दुख पावै है।
चलि री निकुंज माहिं मिलि री पिया सो बेगि,
मन बच काम लाय तो ही धरि ध्यावै है॥
‘चंद्रकला’ तेरे ही सनेह सने एक पाय,
ठाढे ह्वै जमुना तीर पीर सरसावै है।
लै-लै नाम तेरो ही बखाने तोहि प्रान प्यारी,
सुनि री गुपाल लाल बाँसुरी बजावै है॥