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बिन आँचल वो खड़ी बेज़ार / उर्मिल सत्यभूषण

बिन आँचल वो खड़ी बेज़ार
कुदरत रोती ज़ारो ज़ार

कहाँ खो गया सभ्याचार
मानवता है बड़ी बीमार

चर्चे करते हैं विकास के
बड़े बड़े सब भरे बाज़ार

दो राहे चौराहें लाल
भगदड़ है और हाहाकार

फकत वासना बनी मुहब्बत
उर्मिल जीवन बस रफ्तार।