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बिन तुम्हारे होश में रहना सज़ा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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बिन तुम्हारे होश में रहना सज़ा है।
बेख़ुदी भी बिन तुम्हारे बेमज़ा है।
रब से पहले नाम-ए-जानाँ ले रहा हूँ,
है, ख़ुदा से आज भी मेरी नज़ा है।
क्या करूँगा स्वर्ग, भू, पाताल का मैं
बिन तुम्हारे जो भी है वो बेवज़ा है।
आ रहा हूँ अब तुम्हारे साथ जीने,
सब को लगता आ रही मेरी कज़ा है।
माँगता मैं उम्र भर तुमको रहूँगा,
दे, न दे, मुझको ख़ुदा उसकी रज़ा है।