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बिन माँ की बच्ची / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
क्यों मेरे भीतर
यह सवाल
बार-बार
हर बार
पनपता है?
हर किसी के पास
प्यारी-सी माँ है
तो बापू
मुझे थामने को
‘मेरी माँ कहाँ है’
बापू की
लाचार आँखों से
छलकता हुआ सावन
लरजते हुए भावुक
टूटे-फूटे शब्द
हौले-हौले सबकुछ
कह देते हैं
हिचकियाँ बतलाती है
कि
मेरी माँ मुझे बहुत
याद करती है
जब भी
देखतीं हूँ आईना
मुझमें
मेरी माँ दिखती है।