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बिरखा / संजय पुरोहित
Kavita Kosh से
आभै रै आंगणैं
पळकतो चांदो
रंगोळी मांडता तारा
लुकमीचणी खेलती बीजळी
बायरियो खिंदांवतो
छांट्यां रो कागद
उडीकतो बीज मुळक्यो
धोरी हरख्यो
रेत में न्हावंती चिड़कली
दीन्हौा बिरखा नै सामेळो
बादळ कड़कड़ाया-गाज्या
धाप‘र बरस्या
मुरधर पचायली छांट्यां
काढ्या बिरवा
हुयौ धान खेतां में
बसगी मौज
गांव घाली घूमर
घर उमाव में नाच्या।
मुरधर में
जूण री आस बधगी
जमारै री आस पळगी
रूठो भलै राज मोकळो
कदै ई ना रूठै राम
क्यूं फ़ेर चिड़ी
दाणा नै तरसै
जे इन्धर धाप-धाप
लगोलग बरसै !