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बिरणी आस / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
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बिरणी आस मन उदास कभी हूंण नि चैन्दू
हुणत्यळा मनख्यूं देखी कभी रुंण नि चैन्दू ।
सुख सब्यूं थै चैन्दू जु कभी ह्वै नि सकदू
अपड़ा भागो कु दुख अफी तैं खेंण पोड़दू ।
औंसी काळी रात छंटे जाली इन आस च
दुख का पैथर सुख बि आलु इन विश्वास च ।
बटोळ ल्या दिन रात यांमा सोच क्या च
दिन छंटेकी लीगेनी अपड़ा अफसोस क्या च ।
पाखा खैण्नि जौन सदनी बैकुन्ट ह्वैगेनी
बार रस्याळै पतबेड़ी भैजी वु हमुम देगेनी ।
फल्वी डाळी लगै जौंन रस चाखी नी च
भोळ थै हम द्यौला क्य कभी सोची नी च ।
भाग अपडू़ देखा हैंका देखण क्या च
लूंणकी चिलक्याणम पाणी खोजण क्या च ।
मोत्यून भोर्यांन कोन्ना तुमरु विश्वास च
हमरु गुजरु कोदन ह्वै जालु इन आस च ।