भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिलोड़ा सोच का सागर / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिलोड़ा सोच का सागर, लिखा तो ध्यान में आया
समझ में मेरी जो कुछ था, समझ कोई नहीं पाया

सुनामी ने सजाई मौत की महफ़िल फिज़ाओं में
सितम ये भी किया उसने, कोई रो भी नहीं पाया

ग़ज़ब का ज़ुल्म ढाया है, न पूछी आख़िरी ख़्वाहिश
कि छाया लाश के ढेरों पे कैसा मौत का साया

हँसे थे खिलखिला कर जख़्म भी कुछ इस तरह लोगो
ज़मीनो-आस्मां को कहकहों ने और थर्राया

इमारत जो बनी थी खौफ की बुनियाद पर ‘देवी’
गिरी वो भरभरा कर, मिल गया मिट्टी में सरमाया