भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिल्ली बोली म्याऊँ / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिल्ली बोली म्याऊँ,
पास तुम्हारे आऊँ ।

अच्छे लगते दूध-दही,
उनको क्यों तुम छिपा रही ?
जी करता चोरी-चुपके,
सबको चट कर जाऊँ..!
बिल्ली बोली म्याऊँ ।

खीर भरी रक्खी प्याली,
उसको कर दूँगी ख़ाली ।
आँख बचा धीरे-धीरे,
मौज- मज़े से खाऊँ..।
बिल्ली बोली म्याऊँ ।

मुँह में भरा हुआ पानी,
करो नहीं आनाकानी ।
मुझको भी खाने तो दो,
मैं कैसे समझाऊँ..?
बिल्ली बोली म्याऊँ ।